Thursday, June 6, 2024

वीर बालिका (हम्मीर-माता) hammir ki mata ji


          चित्तौड़ के महाराणा लक्ष्मण सिंह के सबसे बड़े कुमार अरि सिंह जी शिकार के लिये निकले थे। एक जंगली सूअर के पीछे अपने साथियों के साथ घोड़ा दौड़ाये वे चले जा रहे थे। सूअर इन लोगों के भय से एक बाजरे के खेत में घुस गया। उस खेत की रक्षा एक बालिका कर रही थी। वह मचान से उतरी और खेत के बाहर आकर घोड़ों के सामने खड़ी हो गयी। बड़ी नम्रता से उसने कहा-'राजकुमार! आप लोग मेरे खेत में घोड़ों को ले जायेंगे तो मेरी खेती नष्ट हो जायगी। आप यहाँ रुकें, मैं सूअर को मारकर ला देती हूँ।'

        राजकुमार को लगा कि यह लड़की खाली हाथ भला सुअर को कैसे मार सकेगी। वे कुतूहलवश खड़े हो गये, पर उन्हें यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उस लड़की ने बाजरे के एक पेड़ को उखाड़कर तेज किया और खेत में निर्भय घुस गयी। थोड़ी ही देरमें उसने सूअर को मारकर राजकुमार के सामने लाकर रख दिया। वहाँ से राजकुमार अपने पड़ाव पर आये। जब से लोग खान कर रहे थे, तब एक पत्थर आकर उनके एक घोड़े के पैर लगा, जिससे घोड़े का एक पैर टूट गया। वह पत्थर उसी किसान की लड़की ने अपने मचान पर से पक्षियों को उड़ाने के लिये फेंका था। राजकुमार के घोडे की दशा देख वह अपने खेत से दौड़कर वहाँ आयी और असावधानी से पत्थर फेंका गया इसके लिये क्षमा माँगने लगी।
        राजकुमार बोले- 'तुम्हारी शक्ति देखकर मैं आश्चर्य में पड़ गया हूँ। मुझे दुःख है कि तुम्हें देने योग्य कोई पुरस्कार इस समय मेरे पास नहीं है।'

        उस लड़की ने कहा-'अपनी गरीब प्रजापर आप कृपा रखें, यही मेरे लिये बहुत बड़ा पुरस्कार है।' इतना कहकर उस समय वह चली गयी। सायंकाल राजकुमार तथा उनके साथी घोड़ों पर बैठे जा रहे थे। तब उन्होंने देखा कि वही लड़की सिर पर दूध की मटकी रखे दोनों हाथों से दो भैंसों की रस्सियाँ पकड़े जा रही है। राजकुमार के एक साथी ने विनोद करने के लिये धक्का देकर उसकी मटकी गिरा देनी चाही, पर जैसे ही उसने घोड़ा बढ़ाया; उस लड़की ने उसका इरादा समझ लिया। उसने अपने हाथ में पकड़ी भैंस की रस्सी को इस प्रकार फेंका कि उस रस्सी में उस सवार के घोड़े का पैर उलझ गया। घोड़े के साथ ही वह सवार भी धड़ाम से भूमि पर गिर पड़ा।

       इस निर्भय बालिका के साहस और शक्ति को देखकर कुमार अरिसिंह मुग्ध हो गये। उन्होंने पता लगाकर जान लिया कि वह क्षत्रिय-कन्या है। स्वयं अरिसिंह ने उसके पिता के पास जाकर उसके विवाह की इच्छा प्रकट की। इस प्रकार अपने पराक्रम के प्रभाव से वह बालिका एक दिन चित्तौड़ की महारानी हुई। प्रसिद्ध राणा हम्मीर ने उसी के गर्भ से जन्म लिया था।

Sunday, May 26, 2024

आहार के नियम भारतीय 12 महीनों अनुसार

आहार के नियम भारतीय 12 महीनों अनुसार
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#चैत्र ( मार्च-अप्रैल) – इस महीने में गुड का सेवन करे क्योकि गुड आपके रक्त संचार और रक्त को शुद्ध करता है एवं कई बीमारियों से भी बचाता है। चैत्र के महीने में नित्य नीम की 4 – 5 कोमल पतियों का उपयोग भी करना चाहिए इससे आप इस महीने के सभी दोषों से बच सकते है। नीम की पतियों को चबाने से शरीर में स्थित दोष शरीर से हटते है।

#वैशाख (अप्रैल – मई)- वैशाख महीने में गर्मी की शुरुआत हो जाती है। बेल पत्र का इस्तेमाल इस महीने में अवश्य करना चाहिए जो आपको स्वस्थ रखेगा। वैशाख के महीने में तेल का उपयोग बिल्कुल न करे क्योकि इससे आपका शरीर अस्वस्थ हो सकता है।

#ज्येष्ठ (मई-जून) – भारत में इस महीने में सबसे अधिक गर्मी होती है। ज्येष्ठ के महीने में दोपहर में सोना स्वास्थ्य वर्द्धक होता है , ठंडी छाछ , लस्सी, ज्यूस और अधिक से अधिक पानी का सेवन करें। बासी खाना, गरिष्ठ भोजन एवं गर्म चीजो का सेवन न करे। इनके प्रयोग से आपका शरीर रोग ग्रस्त हो सकता है।

#अषाढ़ (जून-जुलाई) – आषाढ़ के महीने में आम , पुराने गेंहू, सत्तु , जौ, भात, खीर, ठन्डे पदार्थ , ककड़ी, पलवल, करेला, बथुआ आदि का उपयोग करे व आषाढ़ के महीने में भी गर्म प्रकृति की चीजों का प्रयोग करना आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।

#श्रावण (जूलाई-अगस्त) – श्रावण के महीने में हरड का इस्तेमाल करना चाहिए। श्रावण में हरी सब्जियों का त्याग करे एव दूध का इस्तेमाल भी कम करे। भोजन की मात्रा भी कम ले – पुराने चावल, पुराने गेंहू, खिचड़ी, दही एवं हलके सुपाच्य भोजन को अपनाएं।

#भाद्रपद (अगस्त-सितम्बर) – इस महीने में हलके सुपाच्य भोजन का इस्तेमाल कर  वर्षा का मौसम् होने के कारण आपकी जठराग्नि भी मंद होती है इसलिए भोजन सुपाच्य ग्रहण करे।  इस महीने में चिता औषधि का सेवन करना चाहिए।

#आश्विन (सितम्बर-अक्टूबर) – इस महीने में दूध , घी, गुड़ , नारियल, मुन्नका, गोभी आदि का सेवन कर सकते है। ये गरिष्ठ भोजन है लेकिन फिर भी इस महीने में पच जाते है क्योकि इस महीने में हमारी जठराग्नि तेज होती है।

#कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर) – कार्तिक महीने में गरम दूध, गुड, घी, शक्कर, मुली आदि का उपयोग करे।  ठंडे पेय पदार्थो का प्रयोग छोड़ दे। छाछ, लस्सी, ठंडा दही, ठंडा फ्रूट ज्यूस आदि का सेवन न करे , इनसे आपके स्वास्थ्य को हानि हो सकती है।

#अगहन (नवम्बर-दिसम्बर) – इस महीने में ठंडी और अधिक गरम वस्तुओ का प्रयोग न करे।

#पौष (दिसम्बर-जनवरी) – इस ऋतू में दूध, खोया एवं खोये से बने पदार्थ, गौंद के लाडू, गुड़, तिल, घी, आलू, आंवला आदि का प्रयोग करे, ये पदार्थ आपके शरीर को स्वास्थ्य देंगे। ठन्डे पदार्थ, पुराना अन्न, मोठ, कटु और रुक्ष भोजन का उपयोग न करे।

#माघ (जनवरी-फ़रवरी) – इस महीने में भी आप गरम और गरिष्ठ भोजन का इस्तेमाल कर सकते है। घी, नए अन्न, गौंद के लड्डू आदि का प्रयोग कर सकते है।

#फाल्गुन (फरवरी-मार्च) – इस महीने में गुड का उपयोग करे। सुबह के समय योग एवं स्नान का नियम बना ले। चने का उपयोग न करे।

साभार

Thursday, March 14, 2024

कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है?

कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है?

★ सोना :-

सोना एक गर्म धातु है। सोने से बने पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनते है और साथ साथ सोना आँखों की रौशनी बढ़ता है।

★ चाँदी :-

चाँदी एक ठंडी धातु है, जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है। शरीर को शांत रखती है इसके पात्र में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है, आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है।

★ कांसा :-

काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ाती है। लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है। कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल ३ प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं।

★ तांबा :-

तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध होता है, स्मरण-शक्ति अच्छी होती है, लीवर संबंधी समस्या दूर होती है, तांबे का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है इसलिए इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है. तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान होता है।

★ पीतल :-

पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती। पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल ७ प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं।

★ लोहा :-

लोहे के बर्तन में बने भोजन खाने से शरीर की शक्ति बढती है, लोह्तत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ता है। लोहा कई रोग को खत्म करता है, पांडू रोग मिटाता है, शरीर में सूजन और पीलापन नहीं आने देता, कामला रोग को खत्म करता है, और पीलिया रोग को दूर रखता है. लेकिन लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है। लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है।

★ स्टील :-

स्टील के बर्तन नुक्सान दायक नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते है और ना ही अम्ल से. इसलिए नुक्सान नहीं होता है. इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो नुक्सान भी नहीं पहुँचता।

★ एलुमिनियम :-

एल्युमिनिय बोक्साईट का बना होता है। इसमें बने खाने से शरीर को सिर्फ नुक्सान होता है। यह आयरन और कैल्शियम को सोखता है इसलिए इससे बने पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे हड्डियां कमजोर होती है. मानसिक बीमारियाँ होती है, लीवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचती है। उसके साथ साथ किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियाँ होती है। एलुमिनियम के प्रेशर कूकर से खाना बनाने से 87 प्रतिशत पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं।

★ मिट्टी :-

मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते थे। इस बात को अब आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है कि मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से शरीर के कई तरह के रोग ठीक होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए। भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में वक़्त थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है। दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए सबसे उपयुक्त हैमिट्टी के बर्तन। मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे १०० प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं। और यदि मिट्टी के बर्तन में खाना खाया जाए तो उसका अलग से स्वाद भी आता है।

पानी पीने के पात्र के विषय में 'भावप्रकाश ग्रंथ' में लिखा है....

जलपात्रं तु ताम्रस्य तदभावे मृदो हितम्।
पवित्रं शीतलं पात्रं रचितं स्फटिकेन यत्।
काचेन रचितं तद्वत् वैङूर्यसम्भवम्।
(भावप्रकाश, पूर्वखंडः4)

अर्थात् - पानी पीने के लिए ताँबा, स्फटिक अथवा काँच-पात्र का उपयोग करना चाहिए। सम्भव हो तो वैङूर्यरत्नजड़ित पात्र का उपयोग करें। इनके अभाव में मिट्टी के जलपात्र पवित्र व शीतल होते हैं। टूटे-फूटे बर्तन से अथवा अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए।

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Wednesday, March 13, 2024

हमारी बॉडी समय -समय पर हमें सिग्नल देती है Our body gives us signals from time to time

हमारी बॉडी समय -समय पर हमें सिग्नल देती है,कि हमारे बॉडी में कौन-कौन से विटामिन और मिनरल्स की कमी है,
अगर हम इसके प्रति जागरूक रहें तो हम इसे आसानी से पहचान सकते हैंI
इस पोस्ट में हम कुछ विटामिन और मिनरल्स की कमी के लक्षण को देखेंगे Our body gives us signals from time to time, which vitamins and minerals are lacking in our body, We can easily recognize it if we are aware of it. In this post we will look at some vitamin and mineral deficiency symptoms

1.मैग्नीशियम की कमी -मसल्स क्रैंप ,नींद में कमी ,सर दर्द ,मासिक दर्द ,ब्लड प्रेशर कंट्रोल से बाहर और हाई रहना Magnesium deficiency - muscle cramps, lack of sleep, headache, menstrual pain, blood pressure out of control and remaining high.

2.आयरन की कमी -थकान ,चक्कर आना ,धड़कन तेज होना ,बालों का गिरना ,त्वचा का पीला होना 

Iron deficiency - fatigue, dizziness, rapid heartbeat, hair fall, yellowing of the skin.

3.विटामिन डी की कमी -हड्डियों में दिक्कत ,मांसपेशियों में दिक्कत इम्यूनिटी की कमी होना थकान ,हमेशा तनाव रहना  Vitamin D deficiency - problems in bones, problems in muscles, lack of immunity, fatigue, always being stressed.

4.कैल्शियम की कमी -जोड़ों में कट कट की आवाज आना, नाखून कमजोर होना, बालों का कमजोर होना

5.जिंक की कमी -घाव का ना भरना ,नाखूनों पर उजला निशान इंफेक्शन ,इम्यूनिटी की कमी

6.विटामिन B12 की कमी -हाथों पैरों की नसों में झनझनाहट सूनापन ,मूड में बदलाव, सर दर्द कमजोरी

7.विटामिन सी की कमी -मसूड़े से खून आना ,जोड़ों में दिक्कत, कमजोरी, फेफड़े के विकार, सर्दी-ज़ुकाम,त्वचा से खून 

अपवित्र होते हुए भी पवित्र

पांच वस्तु ऐसी हैं , जो अपवित्र होते हुए भी पवित्र है।

"उच्छिष्टं शिवनिर्माल्यं
वमनं शवकर्पटम् ।
काकविष्टा ते पञ्चैते
पवित्राति मनोहरा॥"

👉 1. उच्छिष्ट — गाय का दूध । 

गाय का दूध पहले उसका बछड़ा पीकर उच्छिष्ट करता है। फिर भी वह पवित्र और शिव पर चढता है।

👉 2. शिव निर्माल्यं - गंगा का जल।

गंगा जी का अवतरण स्वर्ग से सीधी शिव जी के मस्तक पे आई नियमानुसार शिव जी पर चढायी हुइ हर चीज़ निर्माल्य यानि (प्रवाहित करने योग्य) है पर गंगाजल पवित्र है।

👉 3. वमनम्—उल्टी — शहद

मधुमख्खी जब फूलो का रस लेके अपने छल्ले पे आती है , तब वो अपने मुख से उसे निकालती है ,जिससे शहद बनता है ,जो पवित्र कार्यो मे लिया जाता है।

👉 4. शव कर्पटम्— रेशमी वस्त्र

धार्मिक कार्यो को संपादित करने के लिये पवित्रता की आवश्यकता रहती है , रेशमी वस्त्र को पवित्र माना गया है , पर रेशम को बनाने के लिये रेशमी कीड़े को उबलते पानी में डाला जाता है ,ओर उसकी मौत हो जाती है उसके बाद रेशम मिलता है तो हुआ शव कर्पट फिर भी पवित्र है ।

👉 5. काक विष्टा— कौए का मल

कौवा पीपल वगेरे पेड़ों के फल खाता है , और उन पेड़ों के बीज अपनी विष्टा मे इधर-उधर छोड़ देता है , जिसमें से पेड़ों की उत्पत्ति होती है ,आपने देखा होगा की कही भी पीपल के पेड़ उगते नही है बल्कि पीपल काक विष्टा से उगता है ,फिर भी पवित्र है।

जय श्री राम , राधे राधे 🙏

Thursday, January 18, 2024

कक्षा 11 भौतिकी बहुविकल्पी प्रश्न

 

iz- 1- lgh mRrj pqudj fyf[k,

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¼v½       ¼c½

¼l½       ¼n½

[k- iz{ksI; ddk iFk gksrk gS

¼v½ ljy js[kk         ¼c½ ijoykdkj

¼l½ o`RRkh;             ¼n½ nh?kZo`Rrh;

x- U;wVu dk ewy fu;e gS&

¼v½ izFke fu;e dsoy   ¼c½ f}rh; fu;e dsoy

¼l½ r`rh; fu;e dsoy   ¼n½ rhuksa fu;e

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¼v½ twy               ¼c½ vxZ

¼l½  bYksDVªkWu oksYV     ¼n½ okV

M+- oy; dk nzO;eku dsUnz gksrk gS&

¼v½ dsUnz ij           ¼c½ ifjf/k ij

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p- dkSu lk inkFkZ lokZf/kd izR;kLFk gS&

¼v½ rkWck              ¼c½ bLikr

¼l½ IykfLVd           ¼n½ jcj

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d- cQZ ds xyu dh xqIr m’ek ---------- gksrh gSA

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M+- vkosx dk ,l- vkbZ ek=d ---------- gksrk gSA

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iz- 3- fuEu es lR; @vLkR; NkWfV;s&

1-    dks.kh; laosx xq.kuQy gS nzO;eku vkSj dks.kh; osx dk A

2-    gqd dk fu;e izR;kLFkrk dh lhek ds ckgj ykxq gksrk gSA

3-    nks lerkih oØ ,d nwljs dks dHkh ugh dkVrs gSA

4-    f}ijek.kqd xSl dh v.kq dh dsoy LFkkukUrjh; xfr gkssssrh gSA

5-    i`Foh ds pkjksa vksj pUnzek dh xfr ljy vkorZ xfr gksrh gSA

iz- 4- lgh tksfM;ks cukb,

1-    vfHkdsUnz Roj.k        d- 8-314 twy@eksy

2-    cy dk vkosx         [k-  fu;rkad

3-    twy lsd.Mi          x- iw.kZ izR;kLFk

4-    DokVZt               ?k- dks.kh; loasx

5-    ohu dk fu;e         M+- U;wVu lsds.M

6-    lkoZf=d xSl fu;rkad p-

 iz- 5- lgh tksfM;ks cukb,

1-    izxkeh rjax }kjk fdldk izokg gksrk gSA

2-    iz{ksI; iFk ds mPPke fcUnq ij iz{ksi dh fn”kk D;k gksxhA

3-    e”khu ds dy iwtksasZ ds achp LUksgd D;k yxkrs gSA

4-    vizxkeh rjax cuus ds fy, vko”;d izfrcU/k D;k gS\

5-    Roj.k vkSj osx esa ls dkSu lh jkf”k xfr dh fn”kk fu/kkZfjr djrh gS\

Friday, October 6, 2023

कौन है सात महान ‍सप्तर्षि

कौन है सात महान ‍सप्तर्षि.🙏

ऋग्वेद में लगभग एक हजार सूक्त हैं, याने लगभग दस हजार मन्त्र हैं। चारों वेदों में करीब बीस हजार से ज्यादा मंत्र हैं और इन मन्त्रों के रचयिता कवियों को हम ऋषि कहते हैं। 

बाकी तीन वेदों के मन्त्रों की तरह ऋग्वेद के मन्त्रों की रचना में भी अनेकानेक ऋषियों का योगदान रहा है। पर इनमें भी सात ऋषि ऐसे हैं जिनके कुलों में मन्त्र रचयिता ऋषियों की एक लम्बी परम्परा रही। ये कुल परंपरा ऋग्वेद के सूक्त दस मंडलों में संग्रहित हैं और इनमें दो से सात यानी छह मंडल ऐसे हैं जिन्हें हम परम्परा से वंशमंडल कहते हैं क्योंकि इनमें छह ऋषिकुलों के ऋषियों के मन्त्र इकट्ठा कर दिए गए हैं।

आकाश में सात तारों का एक मंडल नजर आता है उन्हें सप्तर्षियों का मंडल कहा जाता है। उक्त मंडल के तारों के नाम भारत के महान सात संतों के नाम पर ही रखे गए हैं। वेदों में उक्त मंडल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है। प्रत्येक मनवंतर में अगल अगल सप्त‍ऋषि हुए हैं। यहां प्रस्तुत है वैवस्वत मनु के काल के सप्तऋषियों का परिचय।

1. सप्तऋषि के पहले ऋषि जिनके पास थी कामधेनु गाय, 

वशिष्ठ :- राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ को कौन नहीं जानता। ये दशरथ के चारों पुत्रों के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था।
कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के मैत्रावरूण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया।

2. दूसरे महान ऋषि मंत्र शक्ति के ज्ञाता और स्वर्ग निर्माता, 

विश्वामित्र:- ऋषि होने के पूर्व विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था, लेकिन वे हार गए। इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया। विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग करने की कथा जगत प्रसिद्ध है। विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था। लेकिन स्वर्ग में उन्हें जगह नहीं मिली तो विश्वामित्र ने एक नए स्वर्ग की रचना कर डाली थी। इस तरह ऋषि विश्वामित्र के असंख्य किस्से हैं।

माना जाता है कि हरिद्वार में आज जहां शांतिकुंज हैं उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इंद्र से रुष्ठ होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी। विश्वामित्र ने इस देश को ऋचा बनाने की विद्या दी और गायत्री मन्त्र की रचना की जो भारत के हृदय में और जिह्ना पर हजारों सालों से आज तक अनवरत निवास कर रहा है।

3. तीसरे महान ऋषि ने बताया ज्ञान विज्ञान तथा अनिष्ट निवारण का मार्ग, 

कण्व:- माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था।

103 सूक्तवाले ऋग्वेद के आठवें मण्डल के अधिकांश मन्त्र महर्षि कण्व तथा उनके वंशजों तथा गोत्रजों द्वारा दृष्ट हैं। कुछ सूक्तों के अन्य भी द्रष्ट ऋषि हैं, किंतु 'प्राधान्येन व्यपदेशा भवन्ति' के अनुसार महर्षि कण्व अष्टम मण्डल के द्रष्टा ऋषि कहे गए हैं। इनमें लौकिक ज्ञान विज्ञान तथा अनिष्ट निवारण सम्बन्धी उपयोगी मन्त्र हैं।

सोनभद्र में जिला मुख्यालय से आठ किलो मीटर की दूरी पर कैमूर श्रृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपस्थली है जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है।

4. चौथे महान ऋषि जिन्होंने दुनिया को बताया विमान उड़ाना, 

भारद्वाज:- वैदिक ऋषियों में भारद्वाज ऋषि का उच्च स्थान है। भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। भारद्वाज ऋषि राम के पूर्व हुए थे, लेकिन एक उल्लेख अनुसार उनकी लंबी आयु का पता चलता है कि वनवास के समय श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता द्वापर का सन्धिकाल था। माना जाता है कि भरद्वाजों में से एक भारद्वाज विदथ ने दुष्यन्त पुत्र भरत का उत्तराधिकारी बन राजकाज करते हुए मन्त्र रचना जारी रखी।

ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं और एक पुत्री जिसका नाम 'रात्रि' था, वह भी रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा मानी गई हैं। ॠग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भारद्वाज ऋषि हैं। इस मण्डल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं। अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं। 'भारद्वाज स्मृति' एवं 'भारद्वाज संहिता' के रचनाकार भी ऋषि भारद्वाज ही थे।

ऋषि भारद्वाज ने 'यन्त्र-सर्वस्व' नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने 'विमान शास्त्र' के नाम से प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता है।

5. पांचवें महान ऋषि पारसी धर्म संस्थापक कुल के और जिन्होंने बताया खेती करना, 

अत्रि:- ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे। अत्रि जब बाहर गए थे तब त्रिदेव अनसूया के घर ब्राह्मण के भेष में भिक्षा माँगने लगे और अनुसूया से कहा कि जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे, तब अनुसूया ने अपने सतित्व के बल पर उक्त तीनों देवों को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी। माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया था।

अत्रि ऋषि ने इस देश में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभ की तरह योगदान दिया था। अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे, जहाँ उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया। अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ।

अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था। मान्यता है कि अत्रि दम्पति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में जन्मे। ऋषि अत्रि पर अश्विनीकुमारों की भी कृपा थी।

6. छठवें ऋषि शास्त्रीय संगीत के रचनाकार 

वामदेव:- वामदेव ने इस देश को सामगान (अर्थात् संगीत) दिया। वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं। भरत मुनि द्वारा रचित भरत नाट्य शास्त्र सामवेद से ही प्रेरित है। हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए सामवेद में संगीत और वाद्य यंत्रों की संपूर्ण जानकारी मिलती है।

वामदेव जब मां के गर्भ में थे तभी से उन्हें अपने पूर्वजन्म आदि का ज्ञान हो गया था। उन्होंने सोचा, मां की योनि से तो सभी जन्म लेते हैं और यह कष्टकर है, अत: मां का पेट फाड़ कर बाहर निकलना चाहिए। वामदेव की मां को इसका आभास हो गया। 
अत: उसने अपने जीवन को संकट में पड़ा जानकर देवी अदिति से रक्षा की कामना की। तब वामदेव ने इंद्र को अपने समस्त ज्ञान का परिचय देकर योग से श्येन पक्षी का रूप धारण किया तथा अपनी माता के उदर से बिना कष्ट दिए बाहर निकल आए।

7. सातवें ऋषि गुरुकुल परंपरा के अग्रज 

शौनक:- शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया और किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया। वैदिक आचार्य और ऋषि जो शुनक ऋषि के पुत्र थे।

फिर से बताएं तो वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भरद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक; ये हैं वे सात ऋषि जिन्होंने इस देश को इतना कुछ दे डाला कि कृतज्ञ देश ने इन्हें आकाश के तारामंडल में बिठाकर एक ऐसा अमरत्व दे दिया कि सप्तर्षि शब्द सुनते ही हमारी कल्पना आकाश के तारामंडलों पर टिक जाती है।

इसके अलावा मान्यता हैं कि अगस्त्य, कष्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, गौतम आदि सभी ऋषि उक्त सात ऋषियों के कुल के होने के कारण इन्हें भी वही दर्जा प्राप्त है।

अंत में पढ़ें कुछ खास तथ्य की बातें...

वेदों का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता है वे नाम क्रमश: इस प्रकार है:- 
1. वशिष्ठ, 
2. विश्वामित्र, 
3. कण्व, 
4. भारद्वाज, 
5. अत्रि, 
6. वामदेव और 
7. शौनक।

पुराणों में सप्त ऋषि के नाम पर भिन्न भिन्न नामावली मिलती है। विष्णु पुराण अनुसार इस मन्वन्तर के सप्तऋषि इस प्रकार है:-

वशिष्ठकाश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत। 
विश्वामित्रभारद्वजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।।

अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं:- 
वशिष्ठ, 
कश्यप, 
अत्रि, 
जमदग्नि, 
गौतम, 
विश्वामित्र और भारद्वाज।

इसके अलावा पुराणों की अन्य नामावली इस प्रकार है:- ये क्रमशः 
केतु, 
पुलह, 
पुलस्त्य, 
अत्रि, 
अंगिरा, 
वशिष्ट तथा मारीचि है।

महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियां मिलती हैं। 

एक नामावली में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ के नाम आते हैं तो 

दूसरी नामावली में पांच नाम बदल जाते हैं। कश्यप और वशिष्ठ वहीं रहते हैं पर बाकी के बदले मरीचि, अंगिरस, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु नाम आ जाते हैं। 

कुछ पुराणों में कश्यप और मरीचि को एक माना गया है तो कहीं कश्यप और कण्व को पर्यायवाची माना गया है। यहां प्रस्तुत है वैदिक नामावली अनुसार सप्तऋषियों का परिचय।

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